रायपुर। छत्तीगसढ़ के कद्दावर बीजेपी नेता बृजमोहन अग्रवाल को मंत्री होने के बाद भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतारा तो बिना इधर-उधर किए चुनावी मैदान में न केवल उतर गए बल्कि जमकर लड़े और जीत का रिकार्ड बना दिया। ऐसा रिकार्ड, जिसे छत्तीगसढ़ में टूटने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिखाई पड़ती। उन्होंने कांग्रेस के विकास उपाध्याय को पौने छह लाख से अधिक मतों से हराया। देश में उनकी आठवी सबसे बड़ी लीड रही। इतने बड़े अंतर से जीतने के बाद निश्चित तौर पर बृजमोहन और उनके समर्थकों की उम्मीदें रही होंगी कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिल जाएगी। कैबिनेट मंत्री न सही राज्य मंत्री भी मिल जाता। मगर वो हुआ नहीं। उनकी जगह पर पहली बार के सांसद तोखन साहू बाजी मार ले गए। इससे बृजमोहन समर्थकों में भारी मायूसी है।
समर्थकों की बड़ी फौज
बृजमोहन अग्रवाल के समर्थकों की पूरे प्रदेश में बड़ी फौज है। सत्ता से पांच साल बाहर रहने के बाद मंत्री बनने से उनके लोगों को लगा कि मोहन भैया पावर में आ गए हैं…अब कोई दिक्कत नहीं। मगर तीन महीने के भीतर ही पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतार दिया तो समर्थकों को जोर का धक्का लगा। फिर भी उम्मीदें बची थी। यही वजह है कि बृजमोहन भी डटकर चुनाव लड़े कि लीड ठीकठाक होने पर केंद्रीय नेतृत्व की ध्यान जाएगा। मगर लीड में टॉप टेन में आने के बाद भी बृजमोहन खाली हाथ रह गए।
बृजमोहन का बयान चौंकाया
बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा के सवाल पर यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि विधायक ना भी रहे तो छह महीने तक मंत्री रह सकता हूं। जाहिर है, सदन के सदस्य न होने के बाद भी मुख्यमंत्री को अधिकार है कि वे किसी को छह महीने के लिए मंत्री बना सकते हैं। मगर इससे पहले उसे विधानसभा का सदस्य बनना पड़ेगा। याने चुनाव जीतकर आना होगा।
क्या कहता है संविधान
संविधान के अनुच्छेद 101 के खंड 2 में स्पष्ट उल्लेख है कि भारत के दो सदनों के लिए चुने जाने पर एक सदन से इस्तीफा देना होगा। “समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम 1950” के अनुसार चुने हुए जनप्रतिनिधियों को इस बारे में फैसला लेने के लिए 14 दिन का टाईम दिया गया है (खबर के नीचे में संविधान की कॉपी लगाई गई, उसे देखिए)।
दो दिन बाद बृजमोहन की सांसदी खतम!
भारत निर्वाचन आयोग ने 4 जून को लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने के बाद अगले दिन 5 जून नवनिर्वाचित सांसदों को नोटिफिकेशन जारी किया। याने 5 जून से काउंट किया जाएगा। इस डेट से 14 दिन 18 जून को शाम पांच बजे पूरा होगा। नियम यह कहता है कि 14 दिन के भीतर अगर किसी एक सदन से इस्तीफा नहीं हुआ तो नई सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाएगी। बृजमोहन अग्रवाल इस समय विधानसभा के सदस्य हैं…बकायदा शपथ भी लिया है। वे लोकसभा के लिए चुने गए हैं मगर वहां अभी शपथ नहीं हुआ है। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं देने के केस में नियम स्पष्ट है कि जनप्रतिनिधि नए सदन में जाने के इच्छुक नहीं है। लिहाजा, नई सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाती है। याने वे विधानसभा के सदस्य बने रहेंगे।
अब क्या होगा?
बृजमोहन अग्रवाल बेहद वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं। स्वाभाविक तौर पर मंत्री पद जाने का उन्हें मलाल तो होगा ही। मगर वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे उनके सियासी भविष्य पर कोई आंच आए। राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहता है। मीडिया माईलेज और समर्थकों में जोश बनाए रखने के लिए चुटकी जरूर ले रहे, मगर वे वहीं करेंगे, तो पार्टी कहेगी। और पार्टी ने लोकसभा का टिकिट दिया था तो अब कुछ कहने के लिए बचता नहीं। वो भी ऐसे समय में जब बीजेपी की सीटें सिकुड कर 240 पर आ गई है। जब पार्टी संकट में हो तो कोई भी जिम्मेदार नेता इस तरह की बात नहीं करेगा, जिससे लोकसभा में पार्टी की सीटें कम हो जाएं। वैसे बृजमोहन अग्रवाल ने कई मौकों पर कहा भी है कि पार्टी जो कहेगी, वह करेंगे। ऐसे में नहीं, लगता कि वे विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं देंगे। सियासी पंडित भी मानते हैं कि बृजमोहन 17 या 18 जून को विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे।