गरियाबंद | छत्तीसगढ़ में अनेकों प्राचीन मंदिर हैं जो लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ हैं। छत्तीसगढ़ में माता दुर्गा के कइयों मंदिर स्थापित हैं। जो अपने आप में चमत्कारी हैं। चमत्कार देखने हजारों श्रद्धालु दूर-दारज मात के दर्शन करने पहुंचते हैं, चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो चुकी हैं। माता को देखने उनसे बात करने को लोग माता दुर्गा के प्राचीन मंदिर पहुँचते हैं, इसी सिलसिले में आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारे में बातएंगे जो मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। यह एक ऐसा मंदिर हैं जो वर्ष में सिर्फ एक ही बार खुलता है।
कहते हैं कि निरई माता की मंदिर में हर वर्ष चैत्र नवरात्र के दौरान अपनेआप ही ज्योति प्रज्जवलित होती है। यह चमत्कार कैसे होता है, यह आज तक पहेली ही बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि यह निरई देवी का ही चमत्कार है कि बिना तेल के ज्योति नौ दिनों तक जलती रहती है।
उल्लेखनीय है कि भारत देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपनेआप में कई रहस्य समेटे हुए हैं और इन्ही रहस्यों के कारण ही ये मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में बेहद अनोखा है। बेहद खास है कि यह मंदिर वर्ष में सिर्फ पांच घंटे के लिए ही खुलता है। चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को वर्ष में एक दिन ही माता का दरबार भक्तों के लिए खुलता है।
देश में कई मंदिर हैं, जिनकी कई मान्यताएं हैं। कई विचार धाराएं प्रचलित हैं, जिससे भक्त सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। माता की कृपा भक्तों पर हमेशा बनी रहती है। माता अपने भक्तों को निराश नहीं करती।आपको बता दें छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर पहले के समीपस्थ ग्राम मोहेरा में निरई माता मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। निरई माता ऊंची पहाड़ी पर पत्थरों के बीच वनों से आच्छादित प्राकृतिक सौंदर्य की गोद में विराजित है। माता का नाम लेके ही भक्त अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
माता का दरबार वर्ष में एक बार चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को सिर्फ 5 घंटे के लिए ही खुलता है। आज के दिन भक्तों का मेला लगता है। श्रद्धालु दूर-दूर से छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे राज्य से भी मातारानी के दर्शन को आते हैं। भक्त कहते हंै जो भी निरई माता को श्रद्धाभाव से मानते हैं, उनकी मुरादें पूरी होती है। श्रद्धालु इस दिन लाखों के संख्या में आते है।
लोग माता के दर्शन को लालायित रहते हैं। भक्त निरई माता की जयकारे के साथ ऊंची पहाड़ी पर चढ़ते हैं। निरई माता निराकार हैं। जिसका कोई आकार नहीं, निरंक है। निरई माता के मंदिर में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता है।